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गायत्री जाप साधना एवं सन्ध्या कर्मादि में उपयोगी मुद्राओं... ...167
लाभ
चक्र- मणिपुर एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- अग्नि एवं आकाश तत्त्व केन्द्रतैजस एवं ज्योति केन्द्र प्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं पिनियल ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- पाचन तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी तंत्र, निचला मस्तिष्क एवं स्नायु तंत्र।
गायत्री जाप के पश्चात की जाने वाली मुद्राएँ 25. सुरभि मुद्रा
सुरभि शब्द के कई अर्थ हैं जैसे कि पृथ्वी, गायों की अधिष्ठात्री देवी, गो जाति की जननी आदि।
यहाँ सुरभि का अभिप्राय देवी विशेष से होना चाहिए। पृथ्वी भी एक तरह से देवी है, क्योंकि उसे माता कहा जाता है। गाय को माता स्वरूप माना गया है। कार्तिकेय की माता पार्वती देवी भी अभिप्रेत हो सकती है। गायत्री जाप समाप्ति के तुरन्त पश्चात यह मुद्रा गायत्री स्वरूप को आत्मस्थ करने के उद्देश्य से भी की जा सकती है।
सुरभि मुद्रा