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160... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
बायीं हथेली मध्यभाग के सन्मुख, अंगुलियाँ बाहर की तरफ, किन्तु हथेली की ओर मुड़ी हुई रहें तथा अंगूठा मध्यभाग की तरफ फैलता हुआ रहे।
स्पष्टतया इस मुद्रा में बायें हाथ की मुड़ी हुई अंगुलियाँ दायें हाथ की मुड़ी हुई अंगुलियों को प्रतिबद्ध करती है और दोनों अंगूठों के अग्रभाग परस्पर स्पर्श करते हैं।21
वराहक मुद्रा पूर्व विधि से विपरीत स्थिति में भी की जा सकती है उस समय दायीं हथेली ऊपर और बायीं हथेली नीचे रहेगी।
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वराहकः मुद्रा लाभ
• इस मुद्रा की साधना अग्नि एवं आकाश तत्त्व को संतुलित करती है। इससे शरीर एवं नाड़ी का शोधन, रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास, क्रोधादि कषायों का दमन तथा हृदय में अनहद आनंद की अनुभूति होती है।
• यह मुद्रा मणिपुर एवं विशुद्धि चक्र को प्रभावित करती है। इससे ज्ञान शक्ति का विकास, शान्त मन की प्राप्ति एवं शोकहीन दीर्घ जीवन प्राप्त होता है।