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गायत्री जाप साधना एवं सन्ध्या कर्मादि में उपयोगी मुद्राओं......161
• तैजस केन्द्र एवं विशुद्धि केन्द्र को जागृत करते हुए यह मुद्रा जीवन को उदात्त, तेजस्वी और निर्मल बनाती है।
• एक्यूप्रेशर स्पेशलिस्ट के अनुसार इससे हिचकी, स्नायुओं की ऐंठन, विजातीय तत्त्वों के निष्कासन में सहयोग मिलता है। 21. सिंहक्रान्तम् मुद्रा ____ इस मुद्रा नाम में सिंह + क्रान्त दो शब्दों का सुमेल है। सामान्यतया सिंह एक पराक्रमी पशु है, क्रान्त का अर्थ है ग्रस्त होना अथवा गमन करना।
दुर्गा, गायत्री का एक रूप है इसका वाहन सिंह है अत: सिंह के साथ गमन करने वाली दुर्गा देवी की तुष्टि हेतु यह मुद्रा की जाती है।
निम्न चित्र के अनुसार यह भी कहा जा सकता है कि जब कोई व्यक्ति भय से क्रान्त (ग्रस्त) हो तो वह हाथ ऊपर करके अपने से बलवान के समक्ष अपनी पराजय स्वीकार कर लेता हैं अथवा स्वयं को समर्पित कर देता है।
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सिंहकान्तम् मुद्रा