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148... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में विधि
दोनों हथेलियों को कमर के समभाग पर अर्थात आगे की तरफ स्थिर करें।
तदनन्तर भूमि से समानान्तर तर्जनी अंगुलियों को नीचे की ओर फैलाते हुए रखें, मध्यमा-अनामिका और कनिष्ठिका अंगुलियों को हथेली की तरफ मोड़ते हुए रखें तथा अंगुलियों से 90° का कोण बनाते हुए द्वयांगुष्ठों के अग्रभागों को परस्पर स्पर्शित करने पर शकट मुद्रा बनती है।13
शकटम् मुद्रा
लाभ __• शकट मुद्रा के प्रयोग से जल एवं आकाश तत्त्व का संयोग एवं संतुलन होता है। इससे हृदय एवं रक्त सम्बन्धी समस्याओं का निवारण होता है।।
• स्वाधिष्ठान एवं विशुद्धि चक्र को जागृत करते हुए यह कण्ठ को मधुर एवं प्रभावी बनाता है। ज्ञान को विकसित करता है। शरीर निरोगी होकर दीर्घजीवी बनता है।
• एक्युप्रेशर स्पेशलिस्ट के अनुसार यह एक पक्षीय लकवा, बेहोशी मिरगी, कान में आवाज आना, नसों में तनाव आदि से राहत देती है तथा शंकालु वृत्ति को कम करती है।