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________________ गायत्री जाप साधना एवं सन्ध्या कर्मादि में उपयोगी मुद्राओं......147 इस मुद्रा में अंजलि विस्तृत रूप से फैली हुई है अत: यह मुद्रा नामोचित गुणवाली है। यौगिक परम्परा द्वारा मान्य इस मुद्रा को गायत्री जाप से पूर्व की विधि में करते हैं। विधि सर्वप्रथम हथेलियों को आकाश की तरफ रखते हुए अंगुलियों को बाहर की ओर फैलायें। अंगूठों को हथेली से पृथक रखते हुए बाहर की तरफ फैलाए रखें। फिर हथेलियों की बाह्य किनारियों का एक-दूसरे से स्पर्श करवाते हुए करयुगल को युगपद् रखने पर जो मुद्रा बनती है, वह व्यापकांजलि मुद्रा कहलाती है।12 लाभ • व्यापकांजलि मुद्रा शरीरगत वायु तत्त्व को प्रभावित करते हुए वायु सम्बन्धी विकार जैसे कुपित वायु, गठिया, वायुशूल आदि का निवारण करती है। ___ • अनाहत चक्र जागृत होने से वक्तृत्व, कवित्व, इन्द्रिय नियंत्रण आदि की शक्तियों में विकास होता है। • यह मुद्रा आँख में दर्द, जाला आना आदि को दूर करती है, ऐसा एक्युप्रेशर परीक्षणों से स्पष्ट हो चुका है। • इस मुद्रा के प्रयोग से हृदय मजबूत बनता है। 12. शकटम् मुद्रा छकड़ा या बैलगाड़ी को शकट कहते हैं। शकट का आगे का भाग पतला और पीछे का भाग मोटा होता है। इस मुद्रा में हाथों की आकृति इसी तरह की बनती है अत: इसका नाम शकट मुद्रा है। शकट का एक अर्थ रोहिणी नक्षत्र है। पुराणों के अनुसार रोहिणी दक्ष की कन्या और चन्द्रमाँ की पत्नी है। दक्ष ब्रह्मा पुत्र और पार्वती के पिता है। यहाँ रोहिणी ब्रह्म की सन्तान परम्परा से सम्बन्धित होने के कारण उसे लक्षित कर यह मुद्रा की जा सकती है। यह संयुक्त मुद्रा गायत्री जाप सम्बन्धी 24 मुद्राओं में से एक है तथा रोगोपशमन हेतु प्रमुख मानी गई है।
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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