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146... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
यह संयुक्त मुद्रा कमर के स्तर पर धारण की जाती है। लाभ
• यह मुद्रा अग्नि तत्त्व को संतुलित करती है जिससे तैजस शरीर का तेज बढ़ता है एवं पाचन क्षमता विकसित होती है।
• मणिपुर चक्र जागृत्त होने से शरीर को शक्ति प्राप्त होती है तथा मधुमेह, कब्ज, अपच आदि समस्याएँ दूर होती हैं।
• यह शरीर के मेटाबोलिज्म प्रणाली का संतुलन करती है। निर्माणशील ऊर्जा (Structive energy) को पूरे शरीर में संचारित करती है। इससे मुँह में थूक का बहाव सुचारू रूप से होता है ऐसा एक्युप्रेशर विशेषज्ञों का मत है। 11. व्यापकांजलिकम् मुद्रा : ___इस मुद्रा नाम में व्यापक + अंजलि इन दो शब्दों का योग है। अंजलि मुद्रा प्राय: अर्पणार्थ की जाती है। तदनुसार व्यापक अंजलि पूर्वक अथवा व्यापक (अत्यधिक) द्रव्य चढ़ाने के भाव से जो मुद्रा बनाई जाती है उसे व्यापकांजलि मुद्रा कहते हैं।
व्यापकांजलिकम् मुद्रा