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________________ गायत्री जाप साधना एवं सन्ध्या कर्मादि में उपयोगी मुद्राओं......143 तत्पश्चात अंगूठों एवं अंगुलियों के अग्रभागों को अपने अंगुलियों विरोधी के अग्रभागों से स्पर्शित करने पर जो मुद्रा निष्पन्न होती है, उसे पंचमुखम् मुद्रा कहते हैं। लाभ • पंचमुखी मुद्रा आकाश तत्त्व को नियंत्रित करते हुए भावधारा को निर्मल बनाती है तथा ध्यान को एकाग्र करती है। • यह मुद्रा आज्ञा चक्र को प्रभावित करती है जिससे मन, दिमाग एवं स्वभाव शान्त रहता है। • इस मुद्रा को 5-7 मिनिट तक करने मात्र से आमाशय की क्षमता एवं ऊर्जा बढ़ती है। गले की सूजन, (Transverse colon) और Sigmaid colon की समस्याएँ दूर होती है। • इस मुद्रा को करने से मानसिक शान्ति प्राप्ति होती है। 9. षण्मुखम् मुद्रा षण्मुख का सीधा सा अर्थ है छह मुख वाला। पार्वती, जो गायत्री देवी का एक अंश स्वरूप है उसका पुत्र कार्तिकेय षडानन अर्थात छह मुखवाला कहा जाता है। संभवत: यह मुद्रा पार्वती सुत को प्रसन्न करने के उद्देश्य से की जाती है। इसमें गायत्री देवी स्वयमेव तुष्ट हो जाती है। योगतत्त्व मुद्रा विज्ञान में यह मुद्रा भक्तों और अनुयायियों के द्वारा धारण की जाती है। यह संयुक्त मुद्रा गायत्री जाप से पूर्व की 24 मुद्राओं में से एक तथा रोग शमन के उपचारार्थ प्रयुक्त होती है। ___इस मुद्रा के द्वारा छह मुख जैसी आकृति प्रतिभासित होती है इसलिए इसे षण्मुख मुद्रा कहते है। विधि दोनों हथेलियों को शरीर के मध्य भाग में, कमर के समभाग पर स्थिर करें। फिर अंगूठा, तर्जनी, मध्यमा और अनामिका के अग्रभागों को अपने विरोधी अंगुलियों के अग्रभागों से संयोजित करें। तत्पश्चात अंगूठों को ऊपर की ओर उठाते हुए तथा कनिष्ठिका अगुलियों को अलग-अलग करते हुए जो मुद्रा निष्पन्न होती है उसे षण्मुखम् मुद्रा कहते हैं।10
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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