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गायत्री जाप साधना एवं सन्ध्या कर्मादि में उपयोगी मुद्राओं... फिर अंगुलियों को भूमि से समानान्तर सामने की तरफ पृथक-पृथक फैलाते हु रखें।
तदनन्तर चारों अंगुलियों के अग्रभागों को विरोधी अंगुलियों के अग्रभागों से योजित करें तथा अंगूठों को ऊपर की तरफ रखने पर चतुर्मुख मुद्रा बनती है।
चतुर्मुखम् मुद्रा
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पृथ्वी तत्त्व को संतुलित करते हुए यह शरीर को बलिष्ठ बनाती है तथा जड़ता एवं भारीपन को दूर करती है ।
लाभ
• मूलाधार को प्रभावित करती हुई यह मुद्रा आरोग्य, दक्षता, आदि में वृद्धि करती हैं।
कुशलता
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एक्युप्रेशर विशेषज्ञों के अनुसार यह जिह्वा में तनाव, भारीपन, दर्द आदि दूर करके बोलने सम्बन्धी समस्याओं को दूर करती है। यह शरीर की धमनियों पर कंट्रोल रखती है।
• यह बौद्धिक क्षमता एवं स्मृति का भी विकास करती है ।