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________________ 140... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में यौगिक परम्परा में यह मुद्रा श्रद्वालु उपासकों द्वारा धारण की जाती है। यह संयुक्त मुद्रा गायत्री जाप से सम्बन्धित 24 मुद्राओं में से एक है। यह रोग निवारण में उपयोगी सिद्ध हुई है। विधि दोनों हथेलियों को शरीर के मध्य भाग में, कमर के सम स्तर पर धारण करें। फिर अंगुलियों को भूमि से समानान्तर सामने की तरफ पृथक्-पृथक् फैलाते हुए रखें। तत्पश्चात मध्यमा, अनामिका एवं कनिष्ठिका अंगुलियों के अग्रभागों को परस्पर सम्मिलित करें तथा अंगूठों को ऊपर की ओर उठाने पर त्रिमुख मुद्रा बनती है। लाभ • अग्नि तत्त्व को संतुलित करने में त्रिमुखी मुद्रा बहु उपयोगी है। इससे मानसिक तनाव कम होता है। शरीर के तेज में वृद्धि होती है। • यह मुद्रा मणिपुर चक्र के माध्यम से तैजस चक्र को प्रभावित करते हुए पाचन सम्बन्धी विकृतियों को दूर करती है। • एक्युप्रेशर प्रणाली के अनुसार यह मुद्रा आँख, नाक, कान सम्बन्धी रोगों को दूर करती है तथा शारीरिक प्रक्रियाओं को सुचारू करती है। ___ • आध्यात्मिक दृष्टि से यह मुद्रा आत्मिक तेज को बढ़ाती है। 7. चतुर्मुखम् मुद्रा सामान्यतया चार मुख वाला चतुर्मुख कहा जाता है। नृत्य में एक प्रकार की चेष्टा को तथा एक प्रकार की ताल को भी चतुर्मुख कहते हैं। भगवान विष्णु चार मुख वाले माने जाते हैं। संभवत: यह मुद्रा विष्णु भगवान की आराधना एवं उनके समरूप बनने के प्रयोजन से की जाती है। यह यौगिक परम्परा की मुद्रा गायत्री जाप से पूर्व करने योग्य 24 मुद्राओं में से सातवीं है तथा इसे बीमारियों के निवारण में उपयोगी सिद्ध किया है। विधि दोनों हथेलियों को शरीर के मध्यभाग, कमर के समभाग पर स्थिर करें।
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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