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________________ 128... विधि . हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में हस्तद्वये सुरभिमुद्रोक्तलक्षण तदंगुल्यष्टकैः गृहीत्वा । अंगुष्ठद्वयमृजूकृतान्यो न्यायमा बध्यात् । एषा पंचपुष्पबाण मुद्रा दक्षिणभागे प्रदर्शयेत् । वही, पृ. 469 ऊपर कही गई सुरभि मुद्रा की आठों अंगुलियों के द्वारा दोनों अंगूठों के अग्रभाग को परस्पर बांधकर एवं उसे दाहिनी ओर प्रदर्शित करने पर पंचपुष्पबाण मुद्रा बनती है। 49. वर मुद्रा से है। विधि अधोमुखो 50. अभय मुद्रा ऊर्ध्वकृत वामहस्तः, प्रसृतो वरमुद्रिका | वही, पृ. 469 देखिए, शारदातिलक 18/13 की टीका दक्षहस्तः प्रसृतोऽभयमुद्रिका ।। वही, 51. अक्षमाला मुद्रा अक्षमाला अर्थात रूद्राक्ष की माला । इस मुद्रा का सम्बन्ध रूद्राक्ष की माला 52. पुस्तक मुद्रा पृ. 469 देखिए, शारदातिलक 18/13 की टीका अंगुष्ठतर्जनी द्वे तु प्रथयित्वां (प्रसा) रयेदक्षमाला, गुलित्रयम् । मुद्रेयं परिकीर्तिता । । वही, पृ. 469 दायाँ अंगूठा और तर्जनी के अग्रभाग को संयुक्त कर शेष तीन अंगुलियों को प्रसारित करने पर अक्षमाला मुद्रा बनती है। वही, वामहस्तं स्वाभिमुख्यं (खं) बद्धा पुस्तकमुद्रिका | पृ. 469 देखिए, शारदातिलक 6/4 की टीका
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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