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________________ शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित ......129 53. संहार मुद्रा विधि अधोमुखो वामहस्त, ऊर्ध्वास्यो दक्षहस्तकः । क्षिप्त्वांगुलीरंगुलीभिस, संयोज्य परिकीर्तयेत् ।। वही, पृ. 469 बायें हाथ को अधोमुख और दायें हाथ को ऊर्ध्वाभिमुख करें। फिर दोनों हाथों की अंगुलियों को परस्पर गूंथकर घुमाना संहार मुद्रा है। उपरोक्त अध्याय में हिन्दू परम्परा के क्रियाकांड मूलक प्रचलित ग्रन्थों से प्राप्त मुद्राओं का वर्णन किया गया है। इनमें मुख्य रूप से देवी-देवताओं की साधना-आराधना से सम्बन्धित मुद्राओं का वर्णन है। यह वर्णन दैविक साधना से आंतरिक जुड़ाव में सहयोगी बने, हमारी दैनिक उपासना में प्रगति करें तथा स्वस्थ तन और मन की प्राप्ति करवाए। इसी में इस अध्याय की सफलता है। सन्दर्भ-सूची 1. कुलार्णवतन्त्र, 17/32 2. क्रियापाद, 1/6 3. वही, 1/7 4. वही, 1/8-9 5. वही, 1/10 6. वही, 1/11-12 7. 'देवं पूजार्थमाह्वानमावाहन मिति स्मृतम् ।' कुलार्णवतन्त्र, 17/90 8. हिन्दी शब्द सागर, भा. 1, पृ. 479 9. शारदातिलक तन्त्र, 23/107 10. 'आसने सन्निवेश: स्यात् स्थापनं'। कुलार्णवतन्त्र, 17/90 11. शारदातिलक तन्त्र, 23/108 12. 'अन्योन्यसम्मुखाकारः सन्निधापनमीरितम्।' कुलार्णवतन्त्र, 17/91 13. शारदातिलक तन्त्र, 23/108-109 14. 'यत्र कुत्राप्यचलनं सन्निरोधनमीरितम् ।' कुलार्णवतन्त्र, 17/91 15. शारदातिलक तन्त्र, 23/109 16. वही, 23/110
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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