________________
शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित ......127
बायें हाथ की चार अंगुलियों से मुट्ठी बनाते हुए अंगूठे को सरल रूप से ऊपर की ओर रखें, फिर वाम पार्श्व में प्रदर्शित करने पर इक्षुचाप मुद्रा बनती है।
इक्षुचाप मुद्रा लाभ
चक्र- मणिपुर एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- अग्नि एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन तंत्र, नाड़ीतंत्र, यकृत, तिल्ली, आँते, स्नायुतंत्र एवं निचला मस्तिष्क। 48. पंचपुष्यबाण मुद्रा
पंचपुष्प अर्थात देवी पुराण के अनुसार चंपा, आम्र, शमी, कमल और कनेर ये पाँच फूल देवताओं को प्रिय हैं। पुष्पबाण अर्थात कामदेव।
यहाँ पर पंचपुष्पबाण से अभिप्राय कामदेव के द्वारा काम की जागृति के लिए की जाने वाली पुष्पों की बाण वर्षा हो सकता है।
इस मुद्रा को दिखाकर देवों को प्रसन्न किया जाता है।