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124... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में 43. धेनु मुद्रा (प्रथम)
वामस्य मध्यमानं तु, तर्जन्यग्रे नियोजयेत् । अनामां कनिष्ठिकां च, तस्यांगुष्ठेन पीडयेत् । दर्शयेद्दक्षिणस्कन्ये,
धेनुमुद्रेयमीरिता ।।
वही, पृ. 468 बायें हाथ की मध्यमा के अग्रभाग को तर्जनी के अग्रभाग से जोड़ें, फिर अंगूठे से अनामिका और कनिष्ठिका को दबायें, फिर उसे दाहिने कन्धे के समीप लाकर प्रदर्शित करने पर धेनु मुद्रा बनती है।
घेनु मुद्रा
लाभ
चक्र- स्वाधिष्ठान एवं मूलाधार चक्र तत्त्व- जल एवं पृथ्वी तत्त्व ग्रन्थि- प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- स्वास्थ्य एवं शक्ति केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, मेरूदण्ड, पाँव।