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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित ......123 विधि
पात्रवत् वामहस्तं च, कृत्वांके वामके तथा । निधायोच्छ्रित वत्कुर्यात्, मुद्रा कापालिकी स्मृता ।।
वही, पृ. 468 बायें हाथ को पात्रवत बनाकर उसे अपनी बायीं गोद में इस तरह रखें कि वह ऊपर उठाया हुआ जैसा दर्शित हो, तब कापाली मुद्रा बनती है।
कापाली मुद्रा
लाभ
चक्र- स्वाधिष्ठान, अनाहत एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- जल एवं वायु तत्त्व ग्रन्थि- प्रजनन, थायमस, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि केन्द्रशक्ति, स्वास्थ्य, आनंद एवं विशद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, हृदय, फेफड़ें, भुजाएं, रक्त संचार प्रणाली, नाक, कान, गला, मुँह, स्वर यंत्र आदि।