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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित ......125
44. बाण मुद्रा
एक लम्बा और नुकीला अस्त्र, जो धनुष पर चढ़ाकर चलाया जाता है जैसे तीर आदि बाण कहलाते हैं। ___बाण शब्द के कई अर्थ हैं किन्तु यहाँ बाण मुद्रा से तात्पर्य नुकीला अस्त्र है। इस मुद्रा को दर्शाने पर दुष्ट एवं उपद्रवी देवी-देवता सावधान हो जाते हैं तथा थोड़ी देर के लिए अपने क्रूर स्वभाव को छोड़ देते हैं। विधि दक्षमुष्टिस्थतर्जन्या, दीर्घया बाणमुद्रिका।।
वही, पृ. 468 दाहिने हाथ को मुट्ठी रूप में बाँधकर तर्जनी को सीधी रखने पर बाण मुद्रा बनती है। 45. नाराच मुद्रा ___ लोहे का बाण या तीर नाराच कहलाता है। इस मुद्रा का प्रयोग विघ्नोपशमन हेतु किया जाता है। विधि अंगुष्ठतर्जन्यग्राभ्यां, स्फोटो नाराचमुद्रिका।
वही, पृ. 468 दाहिना अंगूठा और तर्जनी के अंग्रभागों के घर्षण से आवाज करना अथवा आवाज होना नाराच मुद्रा है। 46. धेनु मुद्रा (द्वितीय)
हस्तद्वये त्वधोवक्त्रे, संमुखे च परस्परम् । वामांगुलीदक्षिणानामांगुलीनां च सन्धिषु । प्रवेश्य मध्यमांगुल्यौ, तर्जन्योस्तु प्रयोजयेत् ।। कनिष्ठे द्वे नाभिकाभ्यां, युंज्यात्सा धेनुमुद्रिका ।
वही, पृ. 468 दोनों हाथों को अधोमुख करके एक-दूसरे के सम्मुख रखें, फिर बायें हाथ की अंगुलियों को दायीं अंगुलियों की सन्धियों में प्रविष्ट करवायें अर्थात सभी अंगुलियों को आपस में गूंथ दें, फिर मध्यमा अंगुलियों को दोनों तर्जनी से