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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित
37. त्रिशूल मुद्रा
त्रिशूल एक प्रकार का अस्त्र है, जिसके सिर पर तीन फल होते हैं और यह महादेव का अस्त्र माना जाता है। यह मुद्रा संभवतया महादेव के अस्त्र की ही सूचक है।
अंगुष्ठेन कनिष्ठां तु, बध्वा प्रसारयेत् त्रिशूलस्य,
मुद्रेयं
...121
शिष्टांगुलित्रयम् । परिकीर्तिता । ।
वही,
पृ. 467
अंगूठे के द्वारा कनिष्ठिका को बांधकर शेष तीन अंगुलियों को प्रसारित करने पर त्रिशूल मुद्रा बनती है।
त्रिशूल मुद्रा
लाभ
चक्र - मूलाधार, आज्ञा एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- पृथ्वी एंव आकाश तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन, पीयूष एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र - शक्ति, दर्शन एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, मस्तिष्क, स्नायु तंत्र, आँख।