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120... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में को पृष्ठ भाग से योजित कर दोनों अंगूठों को तर्जनी के आश्रित रखने पर चक्र मुद्रा बनती है। 33. दंष्ट्रा मुद्रा
चक्र मुद्रां तथा कृत्वा, तर्जनीभ्यां तु मध्यमे । पीडयेदंष्ट्रमुद्रेषा, सर्वपाप प्रणाशिनी ।।
वही, पृ. 467
देखिए, शारदातिलक, 16/7 की टीका 34. श्रीवत्स मुद्रा
अन्योन्यपृष्ठकरयो, मध्यमानामिकांगुली। अंगुष्ठेन तु बध्नीयात् कनिष्ठामूलसंश्रितौ।। तर्जन्यौ कारयेदेषा, मुद्रा श्रीवत्ससंज्ञिता।
__ वही, पृ. 467
देखिए, शारदातिलक 15/22 की टीका। 35. कौस्तुभ मुद्रा
अनामापृष्ठसंलग्नां, दक्षिणस्य कनिष्ठिकाम् । कनिष्ठिकां च बघ्नीयादना माक्षिप्ततर्जनीम् । गृहीत्वा दक्षिणांगुष्ठ, मध्यमानामिकात्रयम् । उच्चयित्वा तत्र वाम, तर्जनीमध्यमे न्यसेत् । दक्षिणे मणिबन्ये च, वामांगुष्ठं च योजयेत् ।। मुद्रेयं कौस्तुभस्योक्ता, दर्शनीया प्रयत्नतः ।
वही, पृ. 467
देखिए, शारदातिलक 15/22 की टीका। 36. वनमाला मुद्रा
स्पृशेत्कष्ठादिपादान्तं, तर्जागुष्ठकनिष्ठया । करद्वयेन मालावत, मुद्रेयं वनमालिका ।।
वही, पृ. 467 देखिए, शारदातिलक 15/22 की टीका