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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित
28. मुख मुद्रा
मुख शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है । यहाँ पर मुख मुद्रा से अभिप्राय किसी देवी-देवता के मुख भाग से होना चाहिये । विधि
कनिष्ठिनामिके बध्वा, स्वांगुष्ठैनैव वामतः । शिष्टांगुली तु प्रसृते, संश्लिष्टे मुखमुद्रिका ।।
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वही, पृ. 466
बायें हाथ के अंगूठे से कनिष्ठिका और अनामिका को बांधकर शेष अंगुलियों को फैलाने और पुनः सम्मिलित करने पर मुख मुद्रा होती है।
29. चर्म मुद्रा
तंत्रशास्त्र की एक मुद्रा, जिसमें बायें हाथ को फैलाकर अंगुलियों को सिकोड़ लेते हैं वह चर्म मुद्रा कहलाती है ।
धर्म मुद्रा