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118... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
विधि
वामहस्तं तथा तिर्यक्, कृत्वा चैव प्रसार्य च । आकुंचितांगुलिं कुर्यात्, चर्ममुद्रा प्रकीर्तिता ।।
वही, पृ. 466 बायें हाथ को प्रसारित करके अंगुलियों को आकुंचित करने पर चर्म मुद्रा बनती है।
लाभ
चक्र- • मूलाधार एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व - पृथ्वी एवं वायु तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि केन्द्र - शक्ति एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मेरूदण्ड, गुर्दे, कान, नाक, गला, मुंह, स्वर यंत्र।
30. मूसल मुद्रा
मुष्टिं कृत्वा तु हस्ताभ्यां वामस्योपरि दक्षिणम् । कुर्यान्मुसलमुद्रेयं, सर्वविघ्नप्रमर्दिनी ।। वही, पृ. 466 देखिए, शारदातिलक 4/49 की टीका
31. अस्त्र मुद्रा
अस्त्र शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न दृष्टियों से अनेक अर्थों में होता है, जैसे शत्रुओं पर चलाया जाने वाला हथियार बाण, जिसके द्वारा कोई वस्तु फेंकी जाए ऐसा धनुष जिससे शत्रु द्वारा चलायमान अस्त्रों को रोका जाए ऐसी ढाल आदि सभी अस्त्र कहलाते हैं।
यहाँ पर अस्त्र मुद्रा का प्रयोग उपद्रवजन्य देवी-देवताओं की शान्ति हेतु किया जा सकता है।
हस्तावधोमुखौ कृत्वा, नाभिदेशे प्रसार्य च । तर्जनीभ्यां नयेत्स्कन्धं प्रोक्तैषास्त्राख्यमुद्रिका ।।
वही, पृ. 467
दोनों हाथों को अधोमुख करके नाभि प्रदेश पर प्रसारित करें। फिर दोनों तर्जनियों को कन्धे के समीप लाने पर अस्त्र मुद्रा बनती है।