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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित
18 वेणु मुद्रा
यह मुद्रा श्रीकृष्ण के द्वारा बांसुरी बजाने की प्रतीक है। इस मुद्रा के माध्यम से मुरलीधर को दिग्दर्शित किया जाता है।
विधि
कुर्यात्तिर्यङ्मुखौ
वेणुधारणाद्धस्तौ, वेणुमुद्रा भवेदेषा, सर्वदा कृष्ण
19. लक्ष्मी मुद्रा
भवेत् ।
वल्लभा ।
वही,
पृ.465
दोनों हाथों को बांसुरी पकड़े हुए के रूप में मुख के समीप लाना वेणु मुद्रा कहलाती है। यह मुद्रा श्रीकृष्ण को अत्यन्त प्रिय थी।
चक्रमुद्रां तथा बध्वा, मध्यमे द्वे प्रसार्य च । कनिष्ठिके तथानीय, परायेंगुष्ठके क्षिपेत् लक्ष्मी मुद्रा परा ह्येषा, सर्वसंपत्प्रदायिनी ।।
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21. काम मुद्रा
वही,
पृ. 465 देखिये, शारदातिलक 8/4 की टीका
20. कुन्त मुद्रा
यहाँ कुन्त मुद्रा का अर्थ भाला है। इस मुद्रा में शस्त्र विशेष को महत्त्व दिया गया है। यह मुद्रा समग्र प्रकार से रक्षा करने हेतु की जाती है । मुष्टिरूर्ध्वगतांगुष्ठा, तर्जन्यग्रे तु विन्यसेत् । सर्वरक्षाकरा ह्येषा, कुन्द्र (न्त) मुद्रेयमीरिता ।
वही,
पृ.465
हनौ (स्तौ) तु संपुटौ कृत्वा, प्रसृतांगुलिकौ तथा । तर्जन्यौ मध्यामांगुष्ठे, अंगुष्ठौ मध्यमास्थितौ । काममुद्रेयमाख्याता, सर्वशक्तिप्रियकरी ।
वही, पृ. 465 देखिये, शारदातिलक 17 /120 की टीका