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114... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
15. वाराह मुद्रा (द्वितीय प्रकार )
विधि
दक्षहस्तं
चोर्ध्वमुखं,
अंगुल्यग्रं तु संयुक्तं,
वही, पृ. 465
दायें हाथ को ऊर्ध्वमुख तथा बायें हाथ को अधोमुख करते हुए अंगुलियों के अग्रभागों को परस्पर जोड़ना दूसरी वाराह मुद्रा है।
लाभ
वामहस्तमधोमुखम् । मुद्रा वाराहसंज्ञिता ।।
चक्र
मणिपुर, स्वाधिष्ठान एवं मूलाधार चक्र तत्त्व - अग्नि, जल एवं पृथ्वी तत्त्व ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- तैजस, स्वास्थ्य एवं शक्ति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, प्रजनन अंग, मल-मूत्र अंग, गुर्दे, मेरूदण्ड ।
16. नृहरि मुद्रा
भगवान विष्णु का चौथा अवतार नृसिंह अवतार माना जाता है। यह मुद्रा नृसिंह अवतार को इंगित करती है ।
विधि
अंगुष्ठाभ्यां च करयोरथाक्रम्य अधोमुखीभिश्शिष्टाभिः,
मुद्रेयं
17. हयग्रीव मुद्रा
वही, 465
दाहिने अंगूठे से बायीं कनिष्ठिका तथा दाहिनी कनिष्ठिका से बायें अंगूठे के अग्रभागों को जोड़ते हुए शेष अंगुलियों को अधोमुख करने पर नृसिंह मुद्रा बनती है।
कनिष्ठिके ।
नृहरेर्मता ।।
वामहस्ततले
दक्षा,
अंगुलीस्तास्त्वधोमुखीः । संरोध्य मध्यमां तासा, मुन्नभ्याधो विमोचयेत् ।
हृयग्रीवप्रिया
मुद्रा,
तन्मूर्तेरनुकारिणी ।।
वही,
पृ.465
देखिये, शारदातिलक 15/72 की टीका