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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित
13. नृसिंही मुद्रा वामस्यांगुष्ठतो त्रिशूलवत्संमुखोर्ध्वा
वामहस्तमथोत्तानं, नामयेदिति
बद्ध्वा, कनिष्ठामंगुलित्रयम् । कुर्यान्मुद्रां नृसिंहिकाम् ।।
वही,
...
T. 464
देखिये, शारदातिलक 16/7 की टीका
14. वाराह मुद्रा (प्रथम प्रकार )
संस्कृत में सूअर को वराह कहते हैं। विष्णु का एक अवतार वराह अवतार माना जाता है। यह मुद्रा विष्णु के वराह अवतार सम्बन्धी होनी चाहिए। विधि
कृत्वा संप्रोक्ता, मुद्रा
...113
चोपरि ।
देवस्य वाराहसंज्ञिता ।।
वाराह मुद्रा - 1
वही, पृ. 464
दाहिने हाथ के पृष्ठ भाग पर बायीं हथेली को रखें। फिर बाएं हाथ की अंगुलियों को देव प्रतिमा के ऊपर खुला रखना प्रथम प्रकार की वाराह मुद्रा
है।