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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित ......109
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लिंग मुद्रा केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, नाड़ी संस्थान, यकृत, तिल्ली,
आँतें, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे। 42. डमरूक मुद्रा
यह मुद्रा सभी विघ्नों के उपशमनार्थ की जाती है। विधि
मुष्टिं सुशिथिला बध्वा, ईषदुच्छ्रितमध्यमाम् । दक्षिणादूर्ध्वमुन्नम्य, कर्ण देशे प्रचालयेत् ।
एषा मुद्रा डमरुका, सर्वविघ्नविनाशिनी । दाहिने हाथ को ढ़ीली मुट्ठी के रूप में बांधकर मध्यमा को किंचित ऊपर उठायें, फिर उस मुट्ठी को कर्ण प्रदेश के निकट लाकर हिलाने पर डमरूक मुद्रा बनती है।
लाभ
चक्र- मूलाधार एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि