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108... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
बायें हाथ को ऊपर की ओर उठाकर हथेली को खुली रखना अभय मुद्रा है। 70
लाभ
चक्र- अनाहत एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थिथायमस एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र - आनंद एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, निचला मस्तिष्क एवं स्नायु तंत्र ।
40. वर मुद्रा
इस मुद्रा का प्रयोग आशीर्वाद देने हेतु किया जाता है। यह मुद्रा पूज्य पुरुषों एवं श्रद्धेय आत्माओं के द्वारा सहज रूप से प्रयुक्त की जाती है ।
जीवन विकास के क्षेत्र में वर मुद्रा का अतुलनीय महत्त्व है। लौकिक व्यवहार के कार्य भी इस मुद्रा को दर्शाने पर निर्विघ्न सम्पन्न होते हैं। यहाँ इस मुद्रा का प्रयोजन आराध्य देवी-देवताओं को सन्तुष्ट कर उनसे वरदान की याचना है।
विधि
अधोमुखो दक्षहस्तः, प्रसृतो वरमुद्रिका ।।
दाहिनी हथेली को अधोमुख करते हुए अंगुलियों को प्रसारित करना वर मुद्रा कहलाता है। 71
41. लिंग मुद्रा
यह मुद्रा शिवलिंग की प्रतीक है।
विधि
उच्छ्रितं दक्षिणांगुष्ठं, वामांगुष्ठेन बन्धयेत् ।
दक्षिणाभिरङ्गुलीभिश्च
वामांगुली लिंगमुद्रेयमाख्याता,
वेष्टयेत् । शिवसान्निध्यकारिणी ।
दाहिने अंगूठे को ऊपर उठाकर उसे बायें अंगूठे से बांधें, फिर दोनों हाथों की अंगुलियों को परस्पर गूंथ देने पर लिंग मुद्रा बनती है। 72
लाभ
चक्र
मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं स्वास्थ्य