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________________ शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित दाहिने हाथ की अंगुलियों को बायीं हथेली के नीचे रखें, दायें हाथ की अंगुलियाँ अधोमुख हों। बायें हाथ की मध्यमा और अनामिका से दायीं अंगुलियों को उठाते हुए मुख के पास लाकर खोल देना हयग्रीवा मुद्रा है।53 26. नारसिंही मुद्रा प्रस्तुत मुद्रा भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को सूचित करती है तथा नरसिंह रूपधारी विष्णु की मुद्रा नारसिंही कहलाती है। विधि ... जानुमध्यगतौ कृत्वा, चिबुकोष्ठौ समावुभौ । हस्तौ च भूमिसंलग्नौ कम्पमानः पुनः पुनः ।। मुखं विजृम्भितं कृत्वा, लेलिहानां च जिह्विकाम् । एषा मुद्रा नारसिंही, प्रधानेति प्रकीर्तिता ।। ...99 दोनों जाँघों के बीच में से हाथों को भूमि पर रखकर ठुड्डी और होठों का परस्पर स्पर्श करें, फिर भूमि पर रखे हुए हाथों को पुनः पुनः कम्पायमान करें तथा मुख को सामान्य स्थिति में रखते हुए जिह्वा को लेलिहाना मुद्रा की भाँति बाहर करने पर नारसिंही मुद्रा बनती है 54 27. नृसिंह मुद्रा यह मुद्रा नारसिंही मुद्रा का ही प्रकारान्तर है । नरसिंह के अवतार रूप को दर्शाने वाली आकृति नृसिंह मुद्रा कही जाती है । विधि वामस्यांगुष्ठतो बद्ध्वा, कनिष्ठामंगुष्ठत्रयम् । त्रिशूलवत् सन्मुखोर्ध्वं कूर्यान् मुद्रा नृसिंहगाम् ।। बायें अंगूठे से कनिष्ठिका को बांधकर शेष तीन अंगुलियों को स्वयं की ओर ऊर्ध्व प्रसरित करना नृसिंह मुद्रा है 155 28. अन्त्र मुद्रा यहाँ अन्त्र शब्द का अभिप्राय आँत या आँतड़ी से है, क्योंकि संस्कृत में आँत या आँतड़ी को अन्त्र कहते हैं। यह मुद्रा चैतसिक अवस्था के सूक्ष्मतम भावों को निवेदित करने की प्रतीक है ।
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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