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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित ......97 23. कौस्तुभ मुद्रा
पुराण के अनुसार एक रत्न, जो समुद्र मंथन के समय प्राप्त हुआ था और जिसे विष्णु अपने वक्षस्थल पर पहने रहते हैं वह कौस्तुभ कहलाता है।49 यह मुद्रा कौस्तुभ रत्न की सूचक है।
विधि
अनामापृष्ठ संलग्ना, दक्षिणस्य कनिष्ठिका । कनिष्ठिकान्या बध्नीया दनामादक्षतर्जनीम् ।। गृहीत्वा दक्षिणांगुष्ठ, मध्यमानामिकात्रयम् । उच्यित्वा तत्र वामे, तर्जनीमध्यमे न्यसेत् । दक्षिणे मणिबन्ये च, वामांगुष्ठं तु योजयेत् ।
मुद्रेयं कौस्तुभस्योक्ता, दर्शनीया प्रयत्नतः ।। दायें हाथ की कनिष्ठिका को अनामिका के पृष्ठभाग पर रखें, फिर बायीं कनिष्ठिका को दायीं अनामिका एवं तर्जनी के साथ बांध दें, फिर दायें हाथ का अंगूठा, मध्यमा और अनामिका को ग्रहण कर वहाँ बायीं तर्जनी और मध्यमा रखें। फिर बायें अंगूठे को दाहिने मणिबन्ध से जोड़ने पर कौस्तुभ मुद्रा बनती है।
यह मुद्रा प्रयत्न पूर्वक दिखायी जाती है।50 24. वनमाला मुद्रा
हिन्दी कोश में वनमाला शब्द के अनेक अर्थ हैं जैसे- वन के फूलों की माला, सब ऋतुओं में उत्पन्न होने वाले अनेक प्रकार के फलों से निर्मित माला. जो घुटने तक लंबी होती है और जिसे श्री कृष्ण धारण करते हैं।51 ___ यहाँ वनमाला मुद्रा से तात्पर्य श्री कृष्ण द्वारा धारण की गई माला है। इस मुद्रा के द्वारा भगवान कृष्ण को वनमाला अर्पण करने के भाव प्रदर्शित किये जाते हैं। विधि
स्पृशेत्कण्ठादि पादान्तं, तर्जन्यांगुष्ठनिष्ठया ।
कर द्वयेन मालावन, मुद्रेयं वनमालिका ।। दोनों हाथों की तर्जनी और अंगूठों को परस्पर में मिलायें, फिर उनके द्वारा