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96... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में विधि
अन्योन्य पृष्ठकरयो, मध्यमानामिकांगुली । अंगुष्ठेन तु बध्नीयात् कनिष्ठामूलसंश्रिते ।।
तर्जन्यौ कारयेदेषा, मुद्रा श्रीवत्ससंज्ञिका। दोनों हथेलियों को आमने-सामने करें। फिर दोनों मध्यमाओं और अनामिकाओं को किंचित झुकाते हुए उन्हें अंगूठों से आक्रमित करें, फिर दोनों तर्जनियों को अपनी-अपनी कनिष्ठिका के मूल भाग में लगाने पर श्रीवत्स मुद्रा बनती है।48
श्रीवत्स मुद्रा लाभ
चक्र- मणिपुर एवं अनाहत चक्र तत्त्व- अग्नि एवं वायु तत्त्व प्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, नाड़ी संस्थान, यकृत, तिल्ली, आँते, हृदय, भुजाएँ, फेफड़ें, रक्त संचरण प्रणाली आदि।