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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित ......93
सप्तजिला मुद्रा
केन्द्र- तैजस, दर्शन एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन तंत्र, नाड़ी तंत, यकृत, तिल्ली, आँते, स्नायुतंत्र, निचला मस्तिष्क, कान, नाक, गला, मुँह एवं स्वर यंत्र। 20. मृग मुद्रा (प्रथम)
मृग नाम की मुद्रा का वर्णन कर चुके हैं। तत्सम्बन्धी आवश्यक जानकारी वहाँ से प्राप्त करनी चाहिये। विधि
मिलित्वानामिकांगुष्ठ, मध्यमाराणि योजयेत् ।
शिष्टांगुल्युच्छिते कुय्यनि मृगमुद्रेयमीरिता । अंगूठा और अनामिका के अग्रभागों को परस्पर मिलाकर उन पर मध्यमा को रखें तथा शेष अंगुलियों को ऊपर की ओर सीधा रखने पर मृग मुद्रा बनती है।45