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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित ......91 विधि
तर्जनीमध्यमासन्धि, निर्गतांगुष्ठमुष्टिका ।
अधोमुखी दीर्घरूपा, मध्यमा विघ्नमुद्रिका ।। दोनों हाथों को मुट्ठी रूप में बनाकर तर्जनी और मध्यमाओं के बीच अंगूठों को इस तरह रखें कि अंगूठों का अग्रभाग थोड़ा बाहर फैला हुआ रहें, फिर दोनों मध्यमाओं को अधोमुख कर देने पर विघ्न मुद्रा बनती है।41
विघ्न मुद्रा
लाभ
चक्र- मूलाधार एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि- प्रजनन एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, ऊपरी मस्तिष्क एवं आँखें। 17. अब्ज मुद्रा
अब्ज का अर्थ कमल भी है। यहाँ अब्ज मुद्रा कमल की सूचक है।