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90... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
दोनों हाथों को एक-दूसरे के सम्मुख करते हुए अंगुलियों को भीतर की तरफ मोड़ें, फिर तर्जनी और मध्यमाओं के बीच दोनों अंगूठों को इस तरह रखें कि अंगूठों का अग्रभाग थोड़ा बाहर की तरफ निकला हुआ रहे तब गणपति मुद्रा बनती है।40
गणपति मुद्रा
लाभ
चक्र- मूलाधार, अनाहत एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- पृथ्वी, वायु एवं आकाश तत्त्व अन्थि- प्रजनन, थायमस एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति, आनंद एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, हृदय, फेफड़ें भुजाएँ, रक्त संचरण प्रणाली, स्नायु तंत्र, निचला मस्तिष्क आदि। 16. विघ्न मुद्रा
किसी कार्य के बीच में पड़ने वाली अड़चन, रूकावट या बाधा विघ्न कहलाता है। यह मुद्रा विघ्न निवारणार्थ अथवा विघ्न प्रिय देवी-देवताओं को शान्त करने हेतु दर्शायी जाती है।