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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित ......85
ज्वालिनी मुद्रा केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन संस्थान, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे। 9. ज्ञान मुद्रा
बौद्धिक क्षमता एवं सम्यग्ज्ञान का अभिवर्द्धन करने वाली मुद्रा ज्ञान मुद्रा कहलाती है। विधि
श्लिष्टाग्रेऽगुंष्ठ तर्जन्यौ, प्रसार्यान्याः प्रयोजयेत् ।
पार्श्वस्याभिमुखी सेयं, ज्ञानमुद्रा प्रकीर्तिता ।। दाहिना अंगूठा और तर्जनी के अग्रभागों को परस्पर संयुक्त करें। फिर शेष अंगुलियों को एक साथ उर्ध्वदिशा में फैलाकर हथेली को स्वयं के सामने स्थिर रखना ज्ञान मुद्रा है।33 10. पुस्तक मुद्रा
यह मुद्रा पुस्तक प्रिय अथवा पुस्तकधारी देवी-देवताओं को प्रदर्शित की जाती है। इसे सरस्वती की मुद्रा भी कह सकते हैं क्योंकि उसके हाथ में हमेशा पुस्तक रहती है।