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________________ 84... . हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में दोनों हाथों के पृष्ठभाग को मिलायें, फिर कनिष्ठिका को कनिष्ठिका से, तर्जनी को तर्जनी से और अंगूठे को अंगूठे से गूथें, तदनन्तर दोनों द्वय मध्यमाओं और अनामिकाओं को हिलाते रहने पर गरूड़ मुद्रा बनती है | 28 लाभ चक्र - अनाहत, आज्ञा, एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व केन्द्र - आनंद, ज्योति एवं ज्ञान केन्द्र ग्रन्थि - थायमस, पिनियल एवं पीयूष ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग - हृदय, फेफड़ें, रक्त संचरण तंत्र, मस्तिष्क, स्नायु तंत्र, आँखें आदि। 7. गन्ध मुद्रा यह मुद्रा गम्भीर पापों, दुर्भाग्य और क्लेश का नाश करने वाली तथा धर्म का ज्ञान देने वाली होने से गन्ध मुद्रा कहलाती है। 29 विधि कनिष्ठांगुष्ठसंयुक्ता, गन्धमुद्रा प्रकीर्तिता । कनिष्ठिका और अंगूठे को संयुक्त कर देना गन्ध मुद्रा है | 30 8. ज्वालिनी मुद्रा जिस मुद्रा में प्रज्वलित अग्नि, शिखा आदि का प्रतीक दर्शाया जाता हो, उसे ज्वालिनी मुद्रा कहते हैं। 31 विधि मणिबन्धौ समौ कृत्वा, करौ तु प्रसृतांगुली । मध्यमे मिलिते कृत्वा, तन्मध्येऽङ्गुष्ठकौ क्षिपेत् । इयं सा परमा मुद्रा, ज्वालिनी होमकर्म्मणि ।। दोनों हाथों के मणिबन्ध भाग को मिलाकर अंगुलियों को ऊपर में सीधा फैलायें। तदनन्तर दोनों तर्जनियों को परस्पर स्पर्शित कर दोनों अंगूठों को तर्जनी से सटा देने पर ज्वालिनी मुद्रा बनती है। 32 लाभ चक्र - मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व - अग्नि एवं जल तत्त्व ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र - तैजस एवं स्वास्थ्य
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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