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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित ......83 लाभ
चक्र- विशुद्धि एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थिथायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- विशुद्धि एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- कान, नाक, गला, मुँह, स्वर यंत्र, ऊपरी मस्तिष्क, आँख। 5. गरूड़ मुद्रा ___पुराणों में इसे साँपों का परम दुश्मन माना गया है। चीनी और लामा इसे विश्व का सूचक मानते हैं। उसका सिर स्वर्ग का, आँखे सूर्य की, पीठ चन्द्र की, पंख हवा के, पैर धरती के तथा पूँछ को पेड़-पौधों का प्रतीक कहा गया है। यह मुद्रा सम्पूर्ण विष का नाश करती है।27 विधि
हस्तावभिमुखौ कृत्वा, रचयित्वा कनिष्ठिके । मिथस्त निके श्लिष्टे, श्लिष्टावंगुष्ठको तथा । मध्यमानामिके द्वे तु, द्वौ पक्षाविति कुंचयेत् । एषा गरूड़मुद्रा, स्यादशेषविष नाशिनी ।
गरुड़ मुद्रा