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शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित ... ...77 5. सम्मुखीकरणी मुद्रा
सम्मुखीकरण का अर्थ है स्वयं के अभिमुख करना। यह मुद्रा आमन्त्रित देवी-देवताओं को स्वयं के समक्ष उपस्थित करने अथवा स्वयं के द्वारा उनकी उपस्थिति का साक्षात अनुभव करने के प्रयोजन से की जाती है। विधि
उत्तानौ द्वौ कृतौ मुष्टी, संमुखीकरणी स्मृता । दोनों हाथों की बंधी मुट्ठियों को ऊपर की ओर करना सम्मुखीकरणी मुद्रा है।16 6. सकलीकृति मुद्रा
कुलार्णव तन्त्र के अनुसार देवता के शरीर पर षङङ्गो का न्यास करना सकलीकृति कहलाता है।
इस मुद्रा में देवता की मूर्ति पर स्वयं के छ: अंगों का न्यास किया जाता है।
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विधि
सकलीकृति मुद्रा देवतांगे षडंगानां न्यासः स्यात्सकलीकृतिः।। देवी-देवताओं की मूर्ति पर अपने छ: अंगों का न्यास करना सकलीकृति
मुद्रा है।17