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76... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में विधि
अधोमुखौकृता सैव प्रोक्ता स्थापनकर्मणि। पूर्वोक्त आवाहनी मुद्रा को अधोमुख कर देना स्थापनी मुद्रा है।11 3. सन्निधापनी मुद्रा
सन्निधापन का अर्थ है- एक-दूसरे को आमने-सामने स्थित करना।12 इस मुद्रा में दोनों हाथ मुट्ठियों के रूप में एक-दूसरे के सम्मुख रहते हैं अत: यह मुद्रा सन्निधापनी मुद्रा के नाम से प्रसिद्ध है।
इस मुद्रा के द्वारा आमंत्रित देवी-देवताओं को स्वयं के निकट उपस्थित रहने हेतु प्रार्थना की जाती है। दोनों मुट्ठियों को आमने-सामने रखना, देवीदेवताओं को स्वयं के समीप स्थिर रखने का प्रतीकात्मक संकेत है। विधि
आश्लिष्टमुष्टियुगला, प्रोन्नातांगुष्ठयुग्मका ।
सन्निधाने समुद्दिष्टा, मुद्रेयं तन्त्रवेदिभिः ।। दोनों हाथों को मुट्ठी रूप में बांधकर एवं उन्हें परस्पर संयुक्त कर अंगूठों को ऊर्ध्व प्रसरित करना सन्निधापनी मद्रा है।13 4. सन्निरोधनी मुद्रा
सन्निरोध का शाब्दिक अर्थ है- सम्यक प्रकार से रोकना। कलार्णव तन्त्र के अनुसार आमंत्रित देवी-देवताओं को जिस आसन पर बिठाया है उन्हें वहाँ से चलित नहीं होने देना सन्निरोध कहलाता है।14
इस मुद्रा के माध्यम से आमंत्रित, स्थापित एवं उपस्थित देवी-देवताओं को पूजा समाप्ति पर्यन्त उसी स्थान पर स्थिर रहने की प्रार्थना की जाती है। ___इस मुद्रा में दोनों अंगूठे मुट्ठी के भीतर रहते हैं जो देवी-देवताओं के स्थिर रहने के प्रतीक हैं। विधि
अंगुष्ठगर्भिणी सैव, सन्निरोधे समीरिता । सन्निधापनी मुद्रा की तरह दोनों हाथों को मुट्ठी रूप में बनाकर द्वयांगुष्ठों को भीतर में रखना सन्निरोधनी मुद्रा है।15