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________________ शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित ......75 दोनों हाथों को अंजलि रूप में बनाकर अंगूठों के द्वारा तर्जनियों के अग्रभाग को भलीभाँति आक्रमित करना आवाहन मुद्रा है। 5. संहार मुद्रा यह मुद्रा पूजा समाप्ति के अनन्तर अर्पित द्रव्यादि शक्तियों को ग्रहण करने एवं उन्हें विसर्जित करने के प्रयोजन से की जाती है। विधि प्रसार्य दक्षिणं पाणिं, कनिष्ठादि क्रमाच्छनैः ।। आकृष्य वर्तयेन्मुष्टिमंगुष्ठेन प्रपीड्य तु । मुद्रा संहारिणी प्रोक्ता, भद्रा कर्मण्यनिन्दिता ।। सर्वप्रथम दाहिने हाथ को फैलाएँ फिर कनिष्ठिका आदि के क्रम से अंगुलियों को शनैः शनैः हथेली के भीतर मोड़कर मुट्ठि रूप बनाना और उन्हें अंगुष्ठ से संपीडित करना संहारिणी मुद्रा है। शारदातिलक तंत्र में वर्णित मुद्राएँ शारदातिलक तंत्र में पूजा सम्बन्धित नौ प्रकार की मुद्राओं का वर्णन किया गया है जो संक्षेप में निम्न प्रकार है1. आवाहनी मुद्रा पूजा के लिए देवता का आह्वान करना अर्थात उन्हें बुलाना आवाहन कहलाता है।' यह मुद्रा मुख्य रूप से पूजा, होम, हवन आदि कार्यों में मंगल के लिए एवं देवताओं को आमंत्रित करने के उद्देश्य से की जाती है। विधि सम्यक् सम्पूरितः पुष्पैः, कराभ्यां कल्पितोंजलिः । आवाहनी समाख्याता, मुद्रा देशिकसत्तमैः ।। दोनों हाथों की कल्पित अंजलि बनाकर पुष्पों के द्वारा उसे भर देना आवाहनी मुद्रा है। 2. स्थापनी मुद्रा स्थापनी शब्द का अर्थ है- स्थित करना, आसन पर बिठाना।10 पूजा आदि के अवसर पर जिन देवी-देवताओं को आमंत्रित किया जाता है उन्हें योग्य स्थान पर बिठाने के अभिप्राय से यह मुद्रा प्रयुक्त होती है।
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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