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74... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
दाहिने हाथ की अंगुलियों को बांधकर ऊपर की ओर फैलाते हुए प्रदर्शित करना शक्ति मुद्रा है। 2. बीज मुद्रा
यह मुद्रा कर्म सिद्धि एवं पवित्रता के लिए की जाती है। विधि
कनिष्ठानामिकान्योन्यं समाविश्य निपीडयेत् । प्रसाध्यागुष्ठमूलाभ्यां, शेषाश्चोर्ध्वं गताः समाः ।।
बीजमुद्रेति विख्याता, यामला कर्मसिद्धये । अनामिका और कनिष्ठिका को परस्पर सम्मिलित कर दबायें, फिर उन्हें अंगूठे के मूल भाग से सम्पृक्त करें तथा अन्य अंगुलियों को ऊपर की ओर समानान्तर रखने पर बीज मुद्रा होती है। 3. प्रशांत मुद्रा
जिस मुद्रा के प्रयोग से उग्र स्वभावी देव शान्त हो जाते हैं अथवा चैतसिक मन प्रशान्त होता है वह प्रशान्त मुद्रा कहलाती है। विधि
अनामिकामध्यमाभ्यामंगुष्ठाग्रे, नियोजयेत् । कृत्वान्योन्यं तदने तु, संसक्ते हस्तयोर्द्वयोः ।।
प्रशान्तेति समाख्याता कन्यसांगुष्ठकोर्ध्वगा। दोनों हाथों की मध्यमा और अनामिका के अग्रभागों को अंगूठों के अग्रभागों से योजित करना तथा कनिष्ठिका और तर्जनी अंगुलियों को ऊर्ध्व दिशा में प्रसरित करना प्रशान्त मुद्रा है। 4. आवाहन मुद्रा
इस मुद्रा के द्वारा देवी-देवताओं को आमन्त्रित किया जाता है इसलिए यह आवाहन शब्द से संबोधित है।
विधि
कृत्वांजलिपुटं, सम्यगधस्तयोरुभयोरपि । तर्जन्यग्रे समाक्रम्य, त्वंगुष्ठाभ्यां समाहिता ।।