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________________ अध्याय-3 शारदातिलक, प्रपंचसार आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लिखित मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप हिन्दू परम्परा या वैदिक परम्परा में कर्मकांड को विशेष महत्त्व दिया गया है। इसी को लक्ष्य में रखकर योग साधक ऋषियों ने कर्मकाण्डमूलक अनेक ग्रन्थों की रचना की। इसी भारतीय वांगमय के अन्तर्गत मुद्रा सम्बन्धी कुछ मौलिक ग्रन्थ भी हमें प्राप्त होते हैं। इनमें वर्णित मुद्राएँ मुख्य रूप से देवीदेवताओं को प्रसन्न करने, आकर्षित करने, आमंत्रित करने तथा उनके स्वरूप वर्णन आदि से मुख्यतया सम्बन्धित है। परंतु प्रायः ग्रन्थों में संस्कृत श्लोक रूप निबद्ध होने से जन सामान्य के लिए उन्हें समझना कठिन है। इस अध्याय में शारदा तिलक आदि पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लेखित मुद्राओं का सचित्र स्वरूप स्पष्ट कर हुए उनके सुपरिणामों पर भी विचार किया गया है। जिससे क्रियाआराधना में समुचित सफलता प्राप्त हो सकेगी। मतंग पारमेश्वर में निर्दिष्ट मुद्राएँ मतंग पारमेश्वर में पूजा सम्बन्धी निम्न पाँच मुद्राओं का वर्णन इस प्रकार मिलता है 1. शक्ति मुद्रा शतकोटि महादिव्य योगिनियों को प्रसन्न करने वाली और तीव्र मुक्ति प्रदान करने वाली होने से इसे शक्ति मुद्रा कहते हैं तथा यह मुद्रा सर्व दुष्टों का निवारण एवं मंगल करने के उद्देश्य से की जाती है । ' विधि 1 बद्ध्वांगुलिं करं श्रेष्ठं प्रसार्योर्ध्वं प्रदर्शयेत् । शक्तिमुद्रा भवेद् भद्रा, सर्वदुष्टनिवारिणी ।।
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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