________________
68... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
प्रथम प्रकार
दायीं हथेली को ऊर्ध्वाभिमुख करते हुए हथेली की एड़ी को कन्धे के समीप लायें। तर्जनी, मध्यमा, कनिष्ठिका और अंगूठे को दाहिनी तरफ फैलायें तथा अनामिका को हथेली की तरफ मोड़ने पर विस्मय मुद्रा बनती है । 40
विस्मय मुद्रा - 1
लाभ
चक्र - मूलाधार एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व - पृथ्वी एवं वायु तत्त्व केन्द्रशक्ति एवं विशुद्धि केन्द्र ग्रन्थि - प्रजनन, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग - मेरूदण्ड, गुर्दे, कान, नाक, गला, मुँह एवं स्वर यंत्र । द्वितीय प्रकार
दूसरे प्रकार में अनामिका को हथेली की तरफ न मोड़कर दाहिनी तरफ ही फैलाये रखते हैं। शेष विधि पूर्ववत जाननी चाहिये | 41