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36... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
जाती है तथा यह धृतशत्रु, दलाल अथवा सियार की सूचक है। इसे भगवान शिव ने कंधे के स्तर पर धारण की थी ।
विधि
दायीं हथेली को नीचे की ओर अभिमुख कर कनिष्ठिका को ऊपर उठायें, शेष अंगुलियों को कनिष्ठिका से 90° कोण पर रखें तथा अंगूठा मध्यमा का स्पर्श किया हुआ रहने पर चतुरहस्त मुद्रा बनती है। 7
चतुरहस्त मुद्रा
चक्र
मणिपुर, सहस्रार एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि, आकाश एवं जल तत्त्व ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज, पिनियल एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र - तैजस, ज्योति एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मस्तिष्क, आँख, पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे ।
लाभ
चतुर मुद्रा
सर्पफण की भाँति अंगुलियों को किंचित झुकाकर बनायी गई मुद्रा चतुर मुद्रा कही जाती है। यहाँ चतुर से तात्पर्य चातुर्यता है ।