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________________ मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...287 हुए आध्यात्मिकता एवं अनुशासन में वृद्धि करती है। • एड्रिनल, पैन्क्रियाज एवं थायमस ग्रंथियों के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा शारीरिक संचरण व्यवस्था, हलन-चलन, श्वसन, रक्त परभ्रमण, मांसपेशी संकुचन, अनावश्यक पदार्थों के निष्कासन आदि का नियमन करती है। 39. सतत मुद्रा यह मुद्रा पक्षी विशेष से सम्बन्धित है। इस मुद्रा में उस गोपनीय पक्षी की आकृति निर्मित करते हैं। मुद्राविधि के अनुसार सभी तरह के कार्यों में इस मुद्रा का उपयोग होता है। इसका बीज मन्त्र 'न' है। विधि "अवाङ्मुखकरद्वयं कृत्वा कनिष्ठिके परस्परं सांडसाबंधेन संबंध्य अंगुष्ठद्वयाऽनामिकाद्वययोः परस्परं संयोज्य मध्यमाद्वयं चंचुवत् प्रसार्य तर्जनीद्वयं चरणयगलमिव कृत्वा सततः पक्षिविशेषस्तस्य मद्रा सतत मुद्रा।" सतत मुद्रा
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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