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288... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
दोनों हाथों को नीचे की ओर अभिमुख करते हुए कनिष्ठिकाओं को परस्पर सांड के समान बंधन से बांध दें। तदनन्तर दोनों अंगूठों और दोनों अनामिकाओं को आपस में संयोजित कर दोनों मध्यमाओं को चोंच की तरह प्रसारित करें तथा दोनों तर्जनियों को चरण युगल की तरह करने पर सतत मुद्रा बनती है। 40. वापी मुद्रा
छोटा जलाशय, बावड़ी अथवा तालाब को वापी कहते हैं। यह मुद्रा तालाब के पानी से सम्बन्धित है। तालाब का जल पवित्र माना जाता है । प्राचीन युग में इस तरह के पवित्र स्थान बहुतायत में होते थे।
वापी मुद्रा प्रतिष्ठा के समय शांतिक कार्यों के निमित्त एवं बंदियों को मुक्त करने के उद्देश्य से की जाती है। जल का स्वभाव शीतलता है, अतः इस मुद्रा को दिखाने से प्रतीक रूप में सर्वत्र शान्ति का वातावरण उपस्थित होता है। इसका बीज मन्त्र 'प' है।
विधि
"तोरण मुद्रायामेव अंगुष्ठद्वय प्रसारणे संयोजने च वापी मुद्रा" । तोरण मुद्रा के समान ही दोनों अंगूठों को प्रसारित करने और संयोजित करने पर वापी मुद्रा बनती है।
वापी मुद्रा