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286... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
38. नाराच मुद्रा
इस मुद्रा का स्वरूप विधिमार्गप्रपा में उल्लिखित मुद्रा नं. 1 के समान है।
उपलब्ध प्रति के अनुसार नाराच मुद्रा दुष्ट शत्रुओं का निग्रह करने और प्रतिष्ठा में दृष्टि दोष का निवारण करने के प्रयोजन से की जाती है।
इस मुद्रा का बीज मन्त्र 'ध' है।
सुपरिणाम
नाराच मुद्रा • नाराच मुद्रा को धारण करने से मणिपुर एवं अनाहत चक्र जागृत होते हैं। इनके सक्रिय होने से मनोविकार घटते हैं एवं परमार्थ में रुचि बढ़ती है। संकल्पबल, आत्मविश्वास एवं पराक्रम बढ़ता है। यह कलात्मक उमंगों, रसानुभूति एवं कोमल संवेदनाओं को उत्पन्न करती है।
• दैहिक दृष्टि से यह मुद्रा एलर्जी, अवसाद, दमा, हृदय, श्वास, छाती, फेफड़ा, पाचन आदि से सम्बन्धित समस्याओं का निवारण करती है।
• अग्नि एवं वायु तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा प्राण धारण एवं उसके सुनियोजन में सहायक बनती है। शरीरस्थ तीनों अग्नियों को जागृत करते