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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...283 36. पार्श्वनाथ मुद्रा
प्रभु पार्श्वनाथ के प्रतिबिम्ब को दर्शाने वाली मुद्रा पार्श्वनाथ मुद्रा कही जाती है। इस मुद्रा प्रयोग से प्रभु पार्श्वनाथ के रक्षक देवी-देवता प्रसन्न होकर सहयोगी बनते हैं।
यह मुद्रा भगवान पार्श्वनाथ के मंत्र जाप के अवसर पर,सर्प भय के निवारण प्रसंग पर और सर्प को आत्मवश करने के प्रयोजन से करते हैं।
इसका बीज मन्त्र ‘थ' है। विधि
"पराङ्मुख हस्ताभ्यां वेणीबंधं विधाय अभिमुखीकृत्वा तजन्यौ आश्लेष्य शेषांगुली मध्ये अंगुष्ठद्वयं विन्यसेदिति पार्श्वनाथ मुद्रा।" ___ एक-दूसरे से विपरीत मुख किये हुए हाथों से वेणी बन्ध करके हाथों को स्वयं के सम्मुख करें तथा तर्जनियों को आश्लेषित (आलिंगित) कर शेष अंगुलियों के मध्य में द्वयांगुष्ठों को प्रस्थापित करने पर पार्श्वनाथ मुद्रा बनती है।
पार्श्वनाथ मुद्रा