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284... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा सुपरिणाम
• चक्र विशेषज्ञों के अनुसार पार्श्वनाथ मुद्रा को धारण करने से आज्ञा एवं सहस्रार चक्र जागृत होते हैं। इनके जागरण से अतीन्द्रिय ज्ञान का जागरण होता है। आध्यात्मिक प्रगति होती है। उन्मत्तता, अवसाद, अनुत्साह, मानसिक अस्थिरता, भय आदि पर विजय प्राप्त होती है।
• दैहिक स्तर पर यह मुद्रा ब्रेन ट्यूमर, कोमा, कानों का संक्रमण, अनिद्रा, निराशा, पार्किन्सन्स रोग आदि में फायदा करती है।
• आकाश तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा श्वसन एवं मस्तिष्क सम्बन्धी विकारों को दूर करती है। आत्मनियंत्रण एवं आत्मविकास में सहायक बनती है तथा आन्तरिक आनंद की अनुभूति करवाती है।
• पीयूष एवं पीनियल ग्रंथि के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा मानसिक विकास एवं मनोवृत्ति के नियंत्रण में सहायक बनती है। 37. गरुड़ मुद्रा
हाथों की वह स्थिति, जिसके द्वारा गरुड़ पक्षी का प्रतिरूप दर्शाया जा सके, उसे गरुड़ मुद्रा कहते हैं।
यह मुद्रा परचक्र का निवारण करने, विष का अपहरण करने और दुष्ट शाकिनी आदि दोषों का निग्रह करने हेतु प्रभु पार्श्वनाथ के बिम्ब के आगे दिखायी जाती है।
इस मुद्रा का बीज मन्त्र 'द' है। विधि
"आत्मनोऽभिमुखं दक्षिणहस्तकनिष्ठिकां संगृह्याऽधः परावर्तित हस्ताभ्यां गरुड़ मुद्रा।" ___ स्वयं की ओर अभिमुख दायें हाथ की कनिष्ठिका को अच्छी तरह से नीचे की ओर परावर्तित करने पर गरुड़ मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• गरुड़ मुद्रा को धारण करने से मूलाधार एवं विशुद्धि चक्र सक्रिय होते हैं। यह मुद्रा व्यवहार नियंत्रण और आंतरिक रूकावटों को दूर करने में सहायक बनती है। यह मूल ऊर्जा का उत्पादन कर अतीन्द्रिय क्षमता का जागरण करती