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________________ 280... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा • प्रजनन एवं थायमस ग्रंथि के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा रोगों से बच्चों की रक्षा करती है। कामवासनाओं को नियंत्रित करते हुए शरीर के तापमान को संतुलित रखने में सहायक बनती है। 33. अश्व मुद्रा अश्वमुख को प्रदर्शित करने वाली मुद्रा अश्व मुद्रा कहलाती है। यह मुद्रा दिखाने से अश्वाधिपति प्रसन्न होते हैं अत: उनके द्वारा किसी तरह का शुभ कर्म करवाया जा सकता है। उपलब्ध कृति के अनुसार यह मुद्रा अश्वाधिपतियों के द्वारा नवीन प्रासाद (चैत्य) करवाये जाने पर, उस चैत्य की प्रतिष्ठा के अवसर पर और अश्वशाला में अश्व के दोषों का निवारण करने के प्रयोजन से की जाती है। इसका बीज मन्त्र ‘ण' है। विधि अश्व मुद्रा "दक्षिणकरस्यांगुली: विरलीकृत्याऽधः मध्यमा किंचिदश्वमुखवद् वक्री करणे अश्व मुद्रा।"
SR No.006254
Book TitleJain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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