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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...279
सनाल कमल मुद्रा
दोनों हाथों को अंजलि के रूप में बाँधकर दोनों अनामिकाओं को मणिबंध पर्यन्त स्वयं के सम्मुख करें तथा दोनों कनिष्ठिकाओं को संयुक्त कर शेष अंगुलियों को पृथक्-पृथक् कर देने पर सनाल कमल मुद्रा बनती है। सुपरिणाम
• इस मुद्रा को धारण करने से मूलाधार एवं अनाहत चक्र जागृत एवं सक्रिय होते हैं। यह मुद्रा सकारात्मक ऊर्जा का उत्पादन कर कलात्मक एवं सृजनात्मक कार्यों में रुचि विकसित करती है।
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भौतिक स्तर पर यह मुद्रा हड्डी की समस्या, कोष्ठबद्धता, सिरदर्द, आर्थराइटिस, दमा, हृदय, फेफड़ें आदि के रोग निवारण में उपयोगी है।
• यह मुद्रा पृथ्वी एवं वायु तत्त्व को संतुलित करते हुए भावों एवं विचारों में स्थिरता लाती है। प्राण धारण एवं उसके सुनियोजन में सहायक बनती है तथा आन्तरिक आनंद की प्राप्ति करवाती है ।