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272... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा
___ इस मुद्रा का बीज मन्त्र ‘झ' है। विधि
"परस्परं पृष्ठलग्नपाणी प्रथितांगुलीको अधः कृत्वा कनिष्ठिकाद्वयं पृष्ठिपट्ट स्थाने ऊर्वीकृत्य सिंहासन मुद्रा।" ____ पृष्ठ भागों से परस्पर संयोजित हाथों और गूंथी हुई अंगुलियों को नीचे की
ओर करके दोनों कनिष्ठिकाओं को पृष्ठ पट्ट के स्थान पर ऊर्ध्वाभिमुख करने से सिंहासन मुद्रा बनती है।
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सिंहासन मुद्रा सुपरिणाम
• चक्र विशेषज्ञों के अनुसार सिंहासन मुद्रा का प्रयोग मूलाधार एवं मणिपुर चक्र को जागृत करता है। इन चक्रों के सक्रिय होने से सह नियंत्रण एवं आत्मविश्वास में वर्धन होता है। यह मुद्रा व्यक्तित्व बोध करवाते हुए भावों की अभिव्यक्ति में सहायक बनती है तथा क्रोध, अहंकार, भय, तृष्णा, अविश्वास आदि अवगुणों का नाश करती है।