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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...273
• शारीरिक स्तर पर यह मुद्रा चयापचय, पाचन तंत्र, लीवर, पित्ताशय, तिल्ली, पाचक ग्रंथि को स्वस्थ रखती है। इसी के साथ कैन्सर, हड्डी की समस्या, कोष्ठबद्धता, बवासीर आदि में लाभ करती है।
• पृथ्वी एवं अग्नि तत्त्व को संतुलित करते हुए यह मुद्रा भीतर में एक विशिष्ट ऊर्जा का अनुभव करवाती है तथा वास्तविकता एवं परिस्थिति स्वीकार की भावना उत्पन्न करती है।
• एड्रीनल ग्रंथि के स्राव को संतुलित करते हुए यह मुद्रा शरीर की संचार व्यवस्था, हलन-चलन, श्वसन, अनावश्यक पदार्थों के निष्कासन में सहायक बनती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करती है और साधक को साहसी, निर्भीक, सहनशील एवं आशावादी बनाती है। 28. पद्मकोश मुद्रा
संपुटित कमल के आकार की मुद्रा पद्मकोश मुद्रा कहलाती है। अर्ध विकसित अवस्था में कमल संपुटाकार में होता है। इस मुद्रा में संपुटमय पद्म को दर्शाया जाता है, अत: इसका नाम पद्मकोश मुद्रा है।
पद्माकोश मुद्रा