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मुद्रा प्रकरण एवं मुद्राविधि में वर्णित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ 271
विधि
"करद्वयस्य संमुखांगुलीग्रथनं कृत्वा पश्चान्मध्यमा द्वयं ऊर्ध्वकृत्य मशीत आकारवत् क्रियते मशीत मुद्रा ।
एक-दूसरे के अभिमुख रहे हुए दोनों हाथों की अंगुलियों को ग्रथित करने एवं दोनों मध्यमाओं को ऊपर की ओर प्रसरित करके मशीत आकार के समान करने पर मशीत मुद्रा बनती है
सुपरिणाम
चक्र - मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व - अग्नि एवं जल तत्त्व ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र - तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी तंत्र, पाचन तंत्र, मूलभूत अंग, प्रजनन अंग एवं गुर्दे ।
26. गृह तोड़ा मुद्रा
हिन्दी का मूल शब्द तोड़ है। तोड़ने की क्रिया या भाव तोड़ कहलाता है। उपलब्ध प्रति के निर्देशानुसार यह मुद्रा गृह प्रवेश और नवीन बिम्ब प्रवेश के समय की जाती है। उस समय मूलतः गृह द्वार या मन्दिर द्वार को खोला जाता है। यहाँ तोड़ने का अभिप्राय खोलना है, अतः इसे गृह तोड़ा मुद्रा कहा गया है। इस मुद्रा को करने से गृह द्वार एवं चैत्यद्वार को खोलने का अथवा चैत्यद्वार का भाव प्रकट होता है।
इसका बीज मन्त्र 'ज' है।
विधि
"अक्षमुद्राप्रणवमुद्राभ्यां सार्धं कृताभ्यां गृहतोड़ामुद्रा । "
और प्रणव मुद्रा
अक्ष मुद्रा 27. सिंहासन मुद्रा
इस मुद्रा के द्वारा सिंह की यथार्थ स्थिति का चित्रण प्रस्तुत किया जाता है, अतः इस मुद्रा का नाम सिंहासन मुद्रा है।
यह मुद्रा जिनालय में मूलनायक आदि बिम्बों की स्थापना और आचार्यपद स्थापना के अवसर पर की जाती है। इस मुद्रा को करते वक्त जिनबिम्ब में एवं आचार्य में सिंहत्व के गुणों का आरोपण किया जाता है अथवा उन्हें सिंहत्व गुणों से परिपूर्ण माना जाता है ।
को साथ करने पर गृह तोड़ा मुद्रा बनती है।